विश्वविद्यालय के विधि विभाग के सभागार में आयोजित इस कार्यशाला में संबंधित कार्यक्षेत्र में प्रयासरत एनजीओज, प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों और एक्सपर्ट्स ने भाग लेकर तंबाकू नियंत्रण में पेश आ रही चुनौतियों पर मंथन कर उनके निदानों पर विचार विमर्श किया। नाडा इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक व कर्मवीर पुरस्कार विजेता सुनील वात्सायन ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि यह कार्यशाला प्रतिनिधियों के सुझावों ,सरकारों तक सिफारिशों के रुप में पेश कर अभियान को मजबूती प्रदान करने में सहायक होगी।
तंबाकू संबंधी कानूनों को मजबूती देना इसलिये आवश्यक हो जाता है क्योंकि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तंबाकू कंपनियां नित नये ग्लैमराइज ट्रेंड्स के द्वारा युवाओं को अपनी ओर लुभा रही हैं । फिर वह चाहे सार्वजनिक स्थानों में डेजिग्नेटिड स्मोकिंग क्षेत्र का प्रचलन हो या फिर टीवी पर प्रसारित ओटीटी कंटेंट प्लेटफार्म में स्मोकिंग को रिझाते कलाकार। इसलिए इस संबंध में कानूनों की समीक्षा कर नियमों को मजबूती देते रहना जरूरी हो जाता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित हिमाचल प्रदेश पुलिस के एसपी - मुख्यालय रमेश चन्द्र जाश्टा (आईपीएस) ने अपने संबोधन में कहा कि तंबाकू विरोधी अभियान के अपने प्रयास जारी रखेंगे, साथ ही सरकार द्वारा जारी अधिनियम और कानून भी सख्ती से लागू करते रहेंगे । परिणामस्वरुप लोगों में जागरूकता भी आएगी, बदलाव भी स्वाभाविक तौर पे आएगा। परंतु इन सभी के बावजूद सेहतमंद समाज की नींव रखने वाले युवाओं को भी चाहिए कि वे अपने व्यक्तित्व निर्माण पर ध्यान दें। नशा सूचक है कि आप अंदर से कमजोर हैं ।इसलिये इस पर काबू पाना आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार एवम एनजीओ के प्रयासों के साथ सामूहिक समर्थन के साथ नशे पर अंकुश लगाया जा सकता है।प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्टेट नोडल आफिसर डॉ गोपाल चौहान ने बताया कि प्रदेश में तंबाकू के उपयोग के भारी बोझ के बावजूद सरकार ने जागरुकता अभियान द्वारा तंबाकू नियंत्रण में कामयाब रहा है और 2 अक्तूबर 2010 को शिमला को पहला धूम्रपान मुक्त शहर घोषित किया। उन्होंने ग्लोबल टोबैको सर्वे का हवाला देते हुये बताया कि 2010 से 2022 तक तंबाकू का उपयोग 21.2 फीसदी से घटकर 11.6 हो गया है। घरों में पैसिव स्मोकिंग 82.5 फीसदी से घटकर 32.9 फीसदी तक रह गई है। सर्वे के अनुसार 13 से 15 आयु वर्ग के बीच तंबाकू का उपयोग 1.1 फीसदी है जो कि भारत मे सबसे कम है। उनके अनुसार प्रदेश को तंबाकू नियंत्रण मॉडल प्रभावी है और राज्य से तंबाकू खात्मे के लक्ष्य प्राप्त करने के लिये 2025 तक तंबाकू के उपयोग को दस फीसदी से कम और 2030 तक पांच फीसदी से कम करने रणनीति तैयार की है।
एचपीयू स्थित लॉ डिपार्टमेंट के डीन प्रोफेसर संजय संधू ने युवा पीढ़ी को तंबाकू के सेवन से बचाने पर बल दिया। उनके सुझावों में स्कूल कॉलेजों में व्यापक एंटी टोबैको एज्युकेशनल प्रोग्राम को अनिवार्य बनाना, नाबालिगों को तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर रोक के लिये सख्त कानून व उल्लंघन करने वालो को भारी दंड, सार्वजनिक स्थानों व मनोरंजन क्षेत्रों को तम्बाकू फ्री जोन बनाने एवम तंबाकू विरोधी मीडिया अभियान प्रोत्साहित संबंधी प्रस्ताव रहे।
सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया के वरिष्ठ अधिवक्ता रणजीत सिंह ने कहा कि तंबाकू के उपयोग के कारण रोगों की संख्या और मृत्यु दर में वृद्धि आई है। तंबाकू से हर साल लगभग साढे 13 लाख से अधिक भारतीयों की मौत हो जाती है। किशोरों में तंबाकू का सेवन भारत को एक बीमार राष्ट्र बनाने को न्योता देता है। इसलिए समय रहते संबंधित कानूनों को अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है। उन्होंने झारखंड का उदाहरण देते कहा कि हिमाचल प्रदेश भी कोटपा अधिनियम में अनुकूल संशोधन कर राज्य स्तर पर लागू कर सकता है।
नई दिल्ली से आमंत्रित कैंपेन फॉर टोबैको फ्री किड्स के भारत के श्री नरेन्द्र कुमार ने अपने संबोधन में बताया कि अकेले भारत में ही 13 से 15 वर्ष के दस में से लगभग एक किशोर ने कभी सिगरेट थी । इनमें से लगभग आधे ने दस वर्ष की आयु से पहले तंबाकू का सेवन शुरु कर दिया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्वाइंट आफ सेल (पीओएस) में दुकानदारों के लिये तंबाकू संबंधी उत्पादों के लिये सख्त नियम होने चाहिए।
भिवानी स्थित चौधरी बंसी लाल युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा मूलराज ने अपने संबोधन में कोटपा के खिलाफ अपराधियों के लिये कड़े दंड संबंधी अधिनियमों को शामिल किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उनका मत था कि प्रदेश भर में सभी पब्लिक स्थानो पर न केवल स्मोक फ्री बल्कि खुली बीडी और सिगरेट पर पाबंदी के लिये फ्लेक्स बोर्ड साईनेज द्वारा जागरुकता लानी चाहिए।
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