समाज में नशे का चलन तेजी से बढ़ता गया है । नशे की लत कारण हर दूसरे घर में कोई नशा पीड़ित मिल ही जाएगा। हमें यह जान लेना चाहिए कि नशा करने वाला व्यक्ति केवल खुद को अंधकार में नहीं डालता बल्कि उसके साथ उसका घर भी बर्बाद हो जाता है । ऐसे हालात में घर वालों को ये समझ ही नहीं आता कि किस तरह से पीड़ित को नशे के जाल से निकालें । नशा घातक बीमारी है। किंतु रोकथाम से इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
नशा मुक्ति परामर्श केंद्र इसका सबसे कारगर तारीका है । नशा मुक्ति केंद्रों को लेकर के फैली अफवाहें एवम पूर्वाग्रह लेकिन इनके पास जाने से रोकते हैं । तो आपको चाहिए कि स्वयं से जांच परख कर निष्कर्ष पर पहुंचे। आपकी जानकारी के लिए बता रहा हुं । जब नशा पीड़ित की नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती होते हैं तो सबसे पहले उनका चेकअप अथवा हेल्थ स्क्रीनिंग की जाती है l इसमें मरीज़ की कई LFT, RFT, CBC, BLOOD SUGAR, HIV, TB समेत कई जांच की जाती है। जांच के नतीजे से पीड़ित के शारीरिक स्थिति में नशे का प्रभाव मालूम चल जाता है।जांच में पाए गए चीजों के आधार पर नशा पीड़ित इंसान के withdrawal और detox का प्रोसेस शुरू किया जाता है। आसान भाषा में समझे तो जब पीड़ित व्यक्ति नशा बंद करता है तो उसे कई चुनौतियो का सामना करना पड़ता है। इसे withdrawal प्रक्रिया कहा जाता है। गंभीर मरीजों को पूरी तरह से ठीक होने में महीनों लग सकते हैं। दिल्ली में नागलोई स्थित नशा मुक्ति केंद्र के इंचार्ज श्री सत्यमोहन जी ने इस समयकाल को पांच से छः माह का बताया। दरअसल यह समय सीमा पूरी तरह से पीड़ित की हालत पर निर्भर करती हैं ।
सभी पीड़ितों की मनोवैज्ञानिक चिकित्सा अथवा काउंसलिंग भी इसमें अहम है । इसमें काउंसलर मरीज का की स्थति का अध्ययन करते हैं। जिसमें नशे का प्रभाव, उसका इतिहास, ट्रिगर प्वाइंट का पता लगाया जाना जरूरी होता है। परिणामों के आधार पर काउंसलिंग की व्यापक रूटीन बनाई जाती है। इसके लिए हर दिन सेशन रखे जाते हैं। जिसमें सामूहिक परामर्श, व्यक्तिगत परामर्श, पारिवारिक परामर्श, आध्यात्मिक परामर्श शामिल रहता है।श्री सत्यमोहन ने कहा कि नशा मुक्ति केंद्र को नशे के मरीजों के लिए स्पोर्ट सिस्टम के तौर पर काम करना चाहिए। नशा कोई कहीं भी छोड़ सकता है लेकिन संकल्प शक्ति होनी चाहिए । हालांकि चिंता की बात कि अधिकतर मरीजों संकल्प लेने में सक्षम नहीं होते। क्योंकि नशा मानसिक स्थिति पर सीधे असर करता है। यहीं पर नशा मुक्ति केंद्रों की जिम्मेवारी शुरू होती है । सत्यमोहन जी ने बताया कि तम्बाकू से हर नशे की शुरुआत होती है। हर तरह के गंभीर नशे की लत का गेटवे तम्बाकू को कहना गलत नहीं होग। नशा पीड़ित जिसे छोटी गलती कहते हैं वो ही आगे जाकर जिंदगी को तबाह कर देती है।
सत्यमोहन जी के नेतृत्व में नागलोई दिल्ली में शिव गोरख ट्रस्ट को लेकर दो नशा मुक्ति केंद्र संचालित हो रहे हैं। यहां 60-70 नशा पीड़ित फ़िलहाल रहते हैं। जिनका का नशा मुक्ति के लिए इलाज चल रहा है।यहां जाने पर पता चला कि कितने रूटीन तरीके से नशा मुक्ति की प्रकिया चलाई जाती है।हर दिन के लिहाज से मरीजों का प्रोग्रेस रिपोर्ट बनाया जाना इसमें प्रमुख होता है। यही जाकर मासिक आकलन करने में सहायक होता है। हालांकि तम्बाकू से जुड़े बहुत कम मरीज हैं यहां किंतु तम्बाकू से जुड़े नियम एवम कानून के बारे में जागरूकता है। तम्बाकू के खतरनाक प्रभावों के बारे में बात करते हुए वहां पाया ।
नशा छोड़ चुके लोगों यह मानते हैं कि मनुष्य चाहे तो क्या नही कर सकता । किसी की कसम खाने मात्र से हालांकि नशे की आदत खत्म नहीं होंगी। नशे की जड़ में मनोविज्ञान को समझना होगा। समाज में ऐसे कई काम हैं जो लोगबाग बिना जाने करते जाते हैं । ऐसे लोगों ने कभी यह जानने की कोशिश नही की कि किसी भी काम का एक परिणाम निकलता है। पीछे क्या अर्थ था उसे क्यों कर रहे। नहीं जानना चाहते,बस बेहोशी के आलम में निपटा देते हैं।धीरे धीरे वो आदत बन जाती है।
मन में यह जिज्ञासा घर कर गई कि आखिर लोग नशे के आदि या गुलाम क्यों हो जाते है। फिर चाहे कुछ भी हो जाए वह लाख कसमे खाने के बाद भी उसे आसानी से छोड़ नही पाते । उस लत से मुक्ति पाना जीवन के लिए चुनौती हो जाती है। लत को पूरा करने के लिए बहाने या मौके कैसे निकाल लेते हैं । जोकि चिन्ता पैदा करता है।नशामुक्ति के के किए गए प्रयास हालांकि एक उम्मीद की किरण लगती है । अंधेरे की गहरी उदासी में सत्यमोहन जी की गोरख सेवा ट्रस्ट जैसी संस्थाएं नशा पीड़ितों के लिए एक बड़ा संबल बनके उभरी हैं।
[Syed S Tauheed]
*Nada Centre for health Communication & Media Studies
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